प्रातः स्मरणीय
श्लोक
निम्नलिखित श्लोकोंका प्रातःकाल पाठ करनेसे बहुत कल्याण
होता है, जैसे- १ दिन अच्छा बीतता
है, २-दुःस्वप्न, कलिदोष, शत्रु, पाप और भवके भयका
नाश होता है, ३-विषका भय नहीं होता,
४-धर्मकी वृद्धि होती है, अज्ञानीको ज्ञान प्राप्त होता है, ५-रोग नहीं होता, ६-पूरी आयु मिलती है, ७- विजय प्राप्त होती है, ८-निर्धन धनी होता है, ९-भूख-प्यास और कामकी बाधा नहीं होती तथा १०-सभी बाधाओंसे
छुटकारा मिलता है इत्यादि ।
निष्कामकर्मियों को भी केवल
भगवत्प्रीत्यर्थ इन श्लोकों का पाठ करना
चाहिये-
गणेशस्मरण-
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड-
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥
'अनाथोंके बन्धु, सिन्दूरसे शोभायमान दोनों गण्डस्थलवाले, प्रबल विघ्नका नाश करनेमें समर्थ एवं इन्द्रादि
देवोंसे नमस्कृत श्रीगणेशका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
प्रातः स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं
नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम् ।
ग्राहाभिभूतवरवारणमुक्तिहेतुं
चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम् ॥
'संसारके भयरूपी महान् दुःखको नष्ट करनेवाले,
ग्राहसे गजराजको मुक्त करनेवाले, चक्रधारी एवं नवीन कमलदलके समान नेत्रवाले,
पद्मनाभ गरुडवाहन भगवान् श्रीनारायणका मैं
प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् II
'संसारके भयको नष्ट करनेवाले, देवेश, गङ्गाधर, वृषभवाहन, पार्वतीपति, हाथमें खट्वाङ्ग एवं त्रिशूल लिये और संसाररूपी रोगका नाश
करनेके लिये अद्वितीय औषध-स्वरूप, अभय एवं वरद
मुद्रायुक्त हस्तवाले भगवान् शिवका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् I
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां
रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ॥
'शरत्कालीन चन्द्रमाके समान उज्ज्वल आभावाली,
उत्तम रत्नोंसे जटित मकरकुण्डलों तथा हारोंसे
सुशोभित, दिव्यायुधोंसे दीप्त
सुन्दर नीले हजारों हाथोंवाली, लाल कमलकी
आभायुक्त चरणोंवाली भगवती दुर्गा देवीका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं
रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि ।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् II
'सूर्यका वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद,
कलेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं। जो
सृष्टि आदिके कारण हैं, ब्रह्मा और शिवके
स्वरूप हैं तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है, प्रातः काल मैं उनका स्मरण करता हूँ।'
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
-(मार्क० स्मृ० पृ० ३२)
'ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, चन्द्रमा, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु —ये सभी मेरे प्रातःकालको मङ्गलमय करें।'
भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च
मनुः पुलस्त्यः पुलहश्च गौतमः ।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
-(वामनपु० १४ । ३३)
'भृगु, वसिष्ठ, क्रतु, अङ्गिरा, मनु, पुलस्त्य,
पुलह, गौतम, रैभ्य, मरीचि, च्यवन और दक्ष—ये समस्त मुनिगण मेरे प्रातःकालको मङ्गलमय करें ।
सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरिपिङ्गलौ
च ।
सप्त स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम
सुप्रभातम् ॥
सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो
द्वीपवनानि सप्त ।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम
सुप्रभातम् ॥
-(वामनपु० १४ । २४,
२७)
'सनत्कुमार, सनक, सनन्दन, सनातन, आसुरि और पिङ्गल-ये ऋषिगण; षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत तथा निषाद-ये सप्त स्वर; अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल — ये सात अधोलोक सभी मेरे प्रातःकालको मङ्गलमय करें। सातों
समुद्र, सातों कुलपर्वत, सप्तर्षिगण, सातों वन तथा सातों द्वीप, भूर्लोक, भुवर्लोक आदि
सातों लोक सभी मेरे प्रातःकालको मङ्गलमय करें।' प्रकृतिस्मरण-
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः
स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः ।
नभः सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
-(वामनपु० १४ । २६)
'गन्धयुक्त पृथ्वी, रसयुक्त जल, स्पर्शयुक्त वायु,
प्रज्वलित तेज, शब्दसहित आकाश एवं महत्तत्त्व - ये सभी मेरे प्रातःकालको
मङ्गलमय करें ।'
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् स्मरेद्वा
शृणुयाच्च भक्त्या ।
दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं भवेच्च नित्यं
भगवत्प्रसादात् ।।
-(वामनपुर १४ । २८)
'इस प्रकार उपर्युक्त इन प्रातःस्मरणीय परम
पवित्र श्लोकोंका जो मनुष्य भक्तिपूर्वक प्रातःकाल पाठ करता है, स्मरण करता है अथवा सुनता है, भगवद्द्यासे उसके दुःस्वप्नका नाश हो जाता है
और उसका प्रभात मङ्गलमय होता है।'
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