बुधवार, 31 मई 2023

एकादशी व्रत कैसे करें ? एकादशी व्रत विधि ? एकादशी व्रत में क्या नहीं खाना चाहिये ? एकादशी व्रत में कौन से फल खायें ? एकादशी व्रत कैसे खोलें ?


एकादशी व्रत विधि

दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग-विलास से भी दूर रहें। प्रातः एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा 'पेस्टका उपयोग न करेंनींबूजामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित हैअतः स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करें। यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि :- 'आज मैं चोरपाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूँगा और न ही किसी का दिल दुखाऊँगा। गौब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवायइस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूँगारामकृष्णनारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा । ऐसा प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि 'हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ हैअतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।मौनजपशास्त्र-पठनकीर्तनरात्रि जागरण एकादशी व्रत में विशेष लाभ पहुँचाते हैं।

 

एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पीयें। कोल्ड ड्रिंक्स एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पीयें। दो बार भोजन न करें। आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खायें। फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध का जल पर रहना विशेष लाभदायक है। व्रत के (दशमीएकादशी और द्वादशी)-इन तीन दिनों में काँसे के वर्तनमांसप्याजलहसुनमसूरउड़दचनेकोदो (एक प्रकार का धान)शाकशहदतेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन ) - इनका सेवन न करें। व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौगेहूँमूँगसेंधा नमककाली मिर्चशर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।

फलाहारी को गोभीगाजरशलजमपालककुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। आमअंगूरकेलाबादामपिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।

जुआनिद्रापानपरायी निन्दाचुगलीचोरीहिंसामेथुनक्रोध तथा झूठकपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए। बैल की पीठ पर सवारी न करें। भूलवश किसी निन्दीक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेनी चाहिए।

एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायेंइससे चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटायें। मधुर बोलेंअधिक न बोलेंअधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं। सत्य भाषण करना चाहिए। इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए।

एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्री गंगाजी में पुण्य (अस्थि) प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमत्त दे देना चाहिए। प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसी से छल-कपट नहीं करना चाहिए। अपना अपमान करने या कटु वचन बोलने वाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें। सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है। मन में दया रखनी चाहिए। इस विधि से व्रत करने वाला उत्तम फल को प्राप्त करता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्न आदिदक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए।

 व्रत खोलने की विधिः- द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए। 'मेरे सात जन्मों के शारीरिवाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुएयह भावना करके सात अंललि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलने चाहिए। 

 


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