सोमवार, 5 जून 2023

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥

 


    प्रातः जागरणके पश्चात् स्नान से पूर्व के कृत्य

प्रातःकाल उठने के बाद स्नान से पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य है, शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया है। गृहस्थको अपने नित्य कर्मो के अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र-निर्दिष्ट- पद्धतिसे ही करने चाहिये; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट्कर्मोक करनेका अधिकारी होता है। अतएव यहाँपर क्रमशः जागरण-कृत्य एवं स्नान-पूर्व- कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है।

ब्राह्म मुहूर्त में जागरण सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घंटे) पूर्व ब्राह्ममुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र में निषिद्ध है ।

 

करावलोकन – आँखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों को देखते हुए निम्नलिखित श्लोक का पाठ करे-

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।

करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥  

                                                                                (आचारप्रदीप)

'हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूलभाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं,  अतः प्रातःकाल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।'

भूमि-वन्दना – शय्या से उठकर पृथ्वी पर पैर रखने के पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करे और उनपर पैर रखने की विवशता के लिये उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोकका पाठ करे-

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते ।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥

'समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूप स्तनों से मण्डित भगवान् विष्णु की पत्नी पृथ्वीदेवि ! आप मेरे पाद-स्पर्श को क्षमा करें।'

मङ्गल-दर्शन – तत्पश्चात् गोरोचन, चन्दन, सुवर्ण, शङ्ख, मृदंग, दर्पण, मणि आदि माङ्गलिक वस्तुओं का दर्शन करे तथा गुरु, अग्नि और सूर्य को नमस्कार करे ।

पिता, गुरु एवं ईश्वर का अभिवादन - पैर, हाथ-मुख धोकर माता, कुल्ला करे। इसके बाद रात का वस्त्र बदलकर आचमन करे। पुनः निम्नलिखित श्लोकोंको पढ़कर सभी अङ्गोंपर जल छिड़के। ऐसा करने से मानसिक स्नान हो जाता |

मानसिक शुद्धिका मन्त्र-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम् ।

स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ॥ 

                                         (आचारभूषण, पृ० ४ में वामनपुराणका वचन)

इसके बाद मूर्तिमान् भगवान् माता-पिता एवं गुरुजनों का अभिवादन करे, फिर परमपिता परमात्मा का ध्यान करे।

कर्म और उपासना का समुच्चय (तन्मूलक संकल्प) - इसके बाद परमात्मा से प्रार्थना करे कि 'हे परमात्मन्! श्रुति और स्मृति आपकी ही आज्ञाएँ हैं। आपकी इन आज्ञाओं के पालन के लिये मैं इस समय से लेकर सोने तक सभी कार्य करूँगा। इससे आप मुझ पर प्रसन्न हों, क्योंकि आज्ञापालन से बढ़कर स्वामी की और कोई सेवा नहीं होती-

त्रैलोक्यचैतन्यमयादिदेव! श्रीनाथ! विष्णो! भवदाज्ञयैव ।

प्रातः समुत्थाय तव प्रियार्थं संसारयात्रामनुवर्तयिष्ये ॥

सुप्तः प्रबोधितो विष्णो! हृषीकेशेन यत् त्वया ।

यद्यत् कारयसे कार्य तत् करोमि त्वदाज्ञया ॥ (व्यास)

आपकी यह भी आज्ञा है कि काम करनेके साथ-साथ मैं आपका स्मरण करता रहूँ। तदनुसार यथासम्भव आपका स्मरण करता हुआ और नाम लेता हुआ काम करता रहूँगा तथा उन्हें आपको समर्पित भी करता रहूँगा । इस कर्मरूप पूजासे आप प्रसन्न हों।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें